गीता का योग आत्मा को परमात्मा से मिलाने की कुंजी है

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सोनभद्र। योग केवल आसन- व्यायाम भर नहीं है, योग आत्मा का परमात्मा से मेल कराने की विधि है। योग मानव जीवन का अभीष्ट प्राप्त करने की कुंजी है। गीता के अनुसार योग परम आराध्य तक की दूरी तय करने का साधन है। गीता जयंती के अवसर पर मंगलवार को राबर्ट्सगंज के जयप्रभा मंडपम में गीता जयंती समारोह समिति द्वारा "गीता में वर्णित योग" विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि शारीरिक आसन-व्यायाम स्वस्थ रहने के लिए बहुत ही आवश्यक हैं, लेकिन हमारे शास्त्रों में, गीता में मानव तन का उद्देश्य पाने के लिए जिस योग का वर्णन किया गया है वह कुछ और ही है और वही वास्तविक योग है। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार अजय शेखर ने कहा कि मानव जीवन संघर्ष से भरा रहता है, गीता का योग उस संघर्ष से निकलने का पथ प्रशस्त करता है। यह आध्यात्म की राह है। स्वागत करते हुए कवि जगदीश पंथी ने धार्मिक भ्रांतियों के निवारण पर बल देते हुए कहा कि केवल योग ही नहीं अपितु कई ऐसे विषय हैं जहाँ परंपरा और आध्यात्म में भेद न कर पाने के कारण लोगों में भ्रम है। इसका निवारण यथार्थ गीता द्वारा संभव है। संयोजक डाक्टर बी सिंह ने कहा कि महर्षि पतंजलि ने गीता के योग का ही एक सरल स्वरूप प्रस्तुत किया। वास्तव में गीता का योग आत्मा को परमात्मा से मिलाने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि पूरा का पूरा गीता आध्यात्म है।विषय प्रवर्तन करते हुए अरुण चौबे ने कहा कि गीता केवल आसन-व्यायाम भर नहीं हो सकता, यह केवल शरीर के पोषण तक नहीं हो सकता है। गीता के अनुसार जो संसार के संयोग- वियोग से रहित है उसी का नाम योग है। अनन्य भाव से एक परमात्मा की शरण में जाने का नाम योग है और इस योग का परिणाम अनामय, शाश्वत परमपद की प्राप्ति है। योगाचार्य सचिन तिवारी ने प्रचलित योग और आध्यात्मिक योग में सांमजस्य स्थापित करते हुए बहिरंग तथा अंतरंग योग की व्याख्या की। डाक्टर गोपाल सिंह ने गीता को जीवन शास्त्र बताते हुए इसे आचरण में लाने पर बल दिया। साहित्यकार पारसनाथ मिश्रा ने गीता में योग शब्द की विस्तृत व्याख्या की। उन्होंने कहा कि चित्त वृत्तियों का निरोध ही योग है। गोष्ठी में यथार्थ गीता के अविनाशी योग के प्रचार-प्रसार में लगे पाँच सख्शियतों के गीता जयंती समारोह समिति द्वारा सम्मानित किया गया। हंसवाहिनी इंटर कॉलेज कसया के प्रधानाचार्य उमाकांत मिश्र, उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यपाल जैन, आध्यात्मसेवी रामानुज पाठक, समाजसेवी राम सूरत पटेल तथा शिक्षक एवं पत्रकार विवेकानंद मिश्रा को शाल ओढ़ाकर तथा सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर गोष्ठी के संयोजक डाक्टर कुसुमाकर ने असहाय गरीबों को कंबल वितरित किया। संचालन भोलानाथ मिश्रा ने किया। गोष्ठी में यथार्थ गीता के अर्थों में गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित करने के लिए केंद्र सरकार के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। इस मौके पर प्रदीप जायसवाल, पियुष त्रिपाठी, कृपा शंकर चौबे, प्रमोद श्रीवास्तव, दिलीप तिवारी, राजेश चौबे, राजू तिवारी, गणेश पाठक, राम सूरत सिंह, बृजेश सिंह, धीरेन्द्र दूबे, आशुतोष कुमार आदि मौजूद रहे।